Wednesday, December 28, 2016

राम कृपा नासहिं सब रोगा

राम कृपा नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा।।
सद्गुरु वैद वचन बिस्वासा। संजम यह न विषै कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान सरधा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहित जतन कोटि नहिं जाहीं।।
अर्थः-ये सभी रोग प्रभु-कृपा से विनष्ट हो सकते हैं। हाँ, हरि कृपा से यदि ऐसा सुन्दर संयोग बन जावे तो, ईश-कृपा की प्राप्ति के लिये पहले श्री सद्गुरुदेव को अपना समर्थ वैद्य बनावे। उनके श्री वचनों पर अचल विश्वास रखे। पथ्य-सेवन यह है कि विषय-वासनाओं से दूर रहे। प्रभु-भक्ति ही वह संजीवनी वटी है, जिसके प्रयोग से सभी व्याधियों का विनाश हो सकता है। औषधि लेते हुये अटूट श्रद्धा को अऩुपान समझे। श्रद्धासहित भक्ति अति आवश्यक है। इस साधन के बिना और कोई मार्ग नहीं है इन मानसिक क्लेशों से मुक्त होने का।