ज्ञानी से कहिये कहा, कहत कबीर लजाय।
अन्धे आगे नाचते, कला अकारथ जाय।।
अर्थः-श्री कबीर साहिब जी कथन करते हैं कि हम इन ज्ञानियों से जो केवल वेदादि शास्त्रों के शब्दों और अर्थों को ही भलीभाँति जानते हैं। जिनका जीवन उन शास्त्रों के वचनों के अनुसार ढला नहीं है। क्या कहें? उनसे हमारा अनुभव सिद्ध बातें करना ऐसे ही निरर्थक होगा जैसे कोई नट बड़ी सुन्दरता से नाच करता हो परन्तु जिसकी प्रसन्नता के लिये वह जो कुछ कर रहा है वह तो नेत्रहीन है। वह क्या जाने कि नृत्य-कला कैसी होती है?
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