Friday, September 23, 2016

सुत दारा और लच्छमी,

सुत दारा और लच्छमी, हर काहू के  होय।
सन्त समागम हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय।।
अर्थः- इस जगत में स्त्री-पुत्र और धन-सम्पत्ति प्रभुति तो हर किसी के पास अपनी अपनी प्रारब्ध अनुसार होते ही हैं। इनका होना कोई बड़ी बात नहीं। ये कुछ ऐसी दुर्लभ विभूतियाँ नहीं, जिनकी कामना की जाये। जगत में बहुमूल्य एवं दुर्लभ विभूतियाँ तो केवल दो ही हैं, जिन्हें प्राप्त कर मनुष्य का जीवन धन्य और जन्म सफल हो जाता है तथा जिनकी आकांक्षा सदैव करनी ही चाहिये। वे हैं सत्पुरुषों का सत्संग और मालिक का भजन। जो इनकी कामना करता है, वही बुद्धिमान है।

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