Friday, November 18, 2016

संत असंतन्हि कै असि करनी।

संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी।।
काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई।।
अर्थः-सन्तों और असन्तों की करनी ऐसी है जैसे चन्दन और कुल्हाड़ी का आचरण होता है। हे भाई, सुनो! कुल्हाड़ी चन्दन को काटती है, परन्तु चन्दन अपने स्वभाव वश अपना गुण देकर उसे सुगन्ध से सुवासित कर देता है। अभिप्राय यह कि सन्त भी बुराई के बदले सदा भलाई ही करते हैं।

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