राम कृपा नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा।।
सद्गुरु वैद वचन बिस्वासा। संजम यह न विषै कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान सरधा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहित जतन कोटि नहिं जाहीं।।
अर्थः-ये सभी रोग प्रभु-कृपा से विनष्ट हो सकते हैं। हाँ, हरि कृपा से यदि ऐसा सुन्दर संयोग बन जावे तो, ईश-कृपा की प्राप्ति के लिये पहले श्री सद्गुरुदेव को अपना समर्थ वैद्य बनावे। उनके श्री वचनों पर अचल विश्वास रखे। पथ्य-सेवन यह है कि विषय-वासनाओं से दूर रहे। प्रभु-भक्ति ही वह संजीवनी वटी है, जिसके प्रयोग से सभी व्याधियों का विनाश हो सकता है। औषधि लेते हुये अटूट श्रद्धा को अऩुपान समझे। श्रद्धासहित भक्ति अति आवश्यक है। इस साधन के बिना और कोई मार्ग नहीं है इन मानसिक क्लेशों से मुक्त होने का।
सद्गुरु वैद वचन बिस्वासा। संजम यह न विषै कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान सरधा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहित जतन कोटि नहिं जाहीं।।
अर्थः-ये सभी रोग प्रभु-कृपा से विनष्ट हो सकते हैं। हाँ, हरि कृपा से यदि ऐसा सुन्दर संयोग बन जावे तो, ईश-कृपा की प्राप्ति के लिये पहले श्री सद्गुरुदेव को अपना समर्थ वैद्य बनावे। उनके श्री वचनों पर अचल विश्वास रखे। पथ्य-सेवन यह है कि विषय-वासनाओं से दूर रहे। प्रभु-भक्ति ही वह संजीवनी वटी है, जिसके प्रयोग से सभी व्याधियों का विनाश हो सकता है। औषधि लेते हुये अटूट श्रद्धा को अऩुपान समझे। श्रद्धासहित भक्ति अति आवश्यक है। इस साधन के बिना और कोई मार्ग नहीं है इन मानसिक क्लेशों से मुक्त होने का।
सहज जी आप तो सहज भाव से इतनी सुंदर वाणी लिख रहे हो, आप को कोटि कोटि प्रणाम। हम जिस सदी में जी रहे हैं वह तो महां अहंकार की है जहां गुरु भक्ति तो दूर, अध्यापकों को भी आदर देने को तैयार नहीं है। अमीरों के बच्चे गुरुजनों को अपने नौकर से भी निकृष्ट मानते हैं। मूढ़ता इस कदर प्रधान है कि सम्पन्न माता पिता अपने ही बच्चों के गुलाम हैं। बड़े बड़े दिखने वाले लोग सिर्फ पाखंडी हैं भीतर तो हीनता की ग्रन्थि है। यह बुद्धि का युग है और बुद्धि मात्र विश्लेषण और तर्क को ही सभ कुछ मानती है। तर्क से कभी प्रेम पैदा नहीं हो सकता। तर्क और समर्पण विपरीत ध्रुव हैं। विनम्र व्यक्ति को लोग मूर्ख समझते हैं। भक्त को सिरफिरा कहते हैं। विडम्बना है कि हम आत्म हन्ता है, अपने ही हाथों अपना सर्वनाश कर रहे हैं। ज्ञानी कहते हैं कि इस बढ़ते पदार्थवाद से, आने वाले दिनों में 50% युवा आत्म हत्या करने पर विवश होंगे। रासयनिक ड्रग्स और नशे उसे विक्षिप्तता में ले जाएंगे जहां से लौटने का उपाय नहीं।
ReplyDeleteव्यक्ति संदेहग्रस्त है और मीडिया पथभृष्ट है।
Jogendrasingh madhaila
Deleteजब जब होहिं घरम की हानी ,बाढै असुर अघम अभिमान,करहिं अनीति जाहिं नही बरनी छीजहिं बिप्र,धेनु, सिर ,धरनी।तब तब हरि धरि मनुज शरीरा ।शोषहि भव सज्जन अरु पीरा।घबराइए नहीं बस आप गुरु पर भरोसा बनाए रखिए।सब काम उन्ही पर छोड दीजिए।
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ramkripa nasahi sab roga kis kaand ki kaun si chaupai hai
ReplyDeleteUttarakand
DeleteJai shree Ram
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