Monday, August 22, 2016

दया कौन पै कीजिए, का पै निर्दय होय।

दया कौन पै कीजिए, का पै निर्दय होय।
सार्इं के सब जीव हैं, कीरी कुञ्जर दोय।।
अर्थः-ऐ मुमुक्षु पुरुष! तू किस विचार में पड़ा है कि मैं किस जीव को मारुँ और किस पर दया कर दूँ। धिक्कार है तेरी ऐसी समझ को। सभी जीव कीड़ी से लेकर हाथी तक में वही तेरा आत्मा ही ओत-प्रोत है। तू अपने से भिन्न किसको देखना चाहता है? सब में तू ही स्थित है। तू योग पथ पर चला है। तेरी दृष्टि में कण कण के अन्दर वही तेरा मालिक ही मुस्करा रहा है ऐसा विश्वास रखना चाहिये। जन्म मरण के भीषण दुःखों से पहले ही प्राणी आकुल व्याकुल हैं। दुःखियों को तू और क्यों पीड़ा पहुँचाना चाहता है?

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