Sunday, August 28, 2016

कहा कियौ हम आइ कै, कहा करहिंगै जाय।

कहा कियौ हम आइ कै, कहा करहिंगै जाय।
इत्त के भये न उत्त के, चालै मूल गँवाय।।
श्री कबीर साहिब जी फरमाते हैं कि जब ऐसी अवस्था है तो जीव ने संसार में आकर क्या कुछ किया तथा यहाँ से जाते हुये क्या मुख लेकर मालिक के दरबार में जायेगा। यह तो न इधर का रहा न उधर का अर्थात् न लोक सँवारा और न परलोक ही। प्रत्युत् अपनी सच्ची पूँजी अर्थात् मानव जन्म के अधिकार को भी गँवाकर चल दिया। तात्पर्य यह कि यदि आत्मा के कल्याण के लिये कुछ करता, तो मानव जन्म का अधिकार तो कम-अज़-कम बना रहता। किन्तु जीवन में बुराई की और रुख रखने के कारण अपना यह अधिकार भी गँवा बैठा।

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