मन गोरख मन गोबिंदा, मन ही औघड़ सोय।
जो मन राखै जतन करि, आपै करता होय।।
मन मोटा मन पातला, मन पानी मन लाय।
मन के जैसी ऊपजै तैसी ही ह्वै जाय।।
मन के बहुतक रंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक रंग में जो रहै, ऐसा विरला कोय।।
अर्थः-""यह मन बड़ा कुशल अभिनेता है। यह गोरखनाथ भी बन सकता है और गोबिन्द भी। यही अवधूत भी बन जाता है और जो कोई मन को जतन से रखना सीख ले, तो वह मालिक से भी मिला देता है। यही मन स्थूल भी है और सूक्ष्म भी। यह आग भी है और पानी भी। मन में जैसी जैसी तरंगें पैदा होती हैं, वैसा ही रुप बन जाता है। यह मन क्षण क्षण में रंग बदलता रहता और इसके अनेक रुप हैं। परन्तु कोई विरला गुरु का सेवक ही गुरु के ध्यान में मन को लीन करके एक रस रह सकता है।''
जो मन राखै जतन करि, आपै करता होय।।
मन मोटा मन पातला, मन पानी मन लाय।
मन के जैसी ऊपजै तैसी ही ह्वै जाय।।
मन के बहुतक रंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक रंग में जो रहै, ऐसा विरला कोय।।
अर्थः-""यह मन बड़ा कुशल अभिनेता है। यह गोरखनाथ भी बन सकता है और गोबिन्द भी। यही अवधूत भी बन जाता है और जो कोई मन को जतन से रखना सीख ले, तो वह मालिक से भी मिला देता है। यही मन स्थूल भी है और सूक्ष्म भी। यह आग भी है और पानी भी। मन में जैसी जैसी तरंगें पैदा होती हैं, वैसा ही रुप बन जाता है। यह मन क्षण क्षण में रंग बदलता रहता और इसके अनेक रुप हैं। परन्तु कोई विरला गुरु का सेवक ही गुरु के ध्यान में मन को लीन करके एक रस रह सकता है।''
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