Saturday, July 16, 2016

सीतल चन्दन चन्द्रमा तैसे सीतल सन्त।।

सीतल चन्दन चन्द्रमा तैसे सीतल सन्त।।
तैसे सीतल सन्त जगत की ताप बुझावैं।
जो कोइ आवै जरत मधुर मुख बचन सुनावैं।।
धीरज सील सुभाव छिपा ना जात बखानी।
कोमल अति मृदु बैन बज्र को करते पानी।।
रहन चलन मुसकान ज्ञान को सुगंध लगावै।
तीन ताप मिट जायें संत के दर्सन पावैं।।
पलटू ज्वाला उदर की रहै न मिटै तुरन्त।
सीतल चन्दन चन्द्रमा तैसे सीतल सन्त।।
अर्थः-जिस प्रकार चन्दन और चन्द्रमा शीतल होते हैं, उसी प्रकार सन्त भी स्वभाव से अति शीतल होते हैं। अपने शीतल स्वभाव से वे सांसारिक प्राणियों के तपते हुये ह्मदयों को शान्त शीतल करते हैं। जो कोई उनकी शरण में आता है, अपने मधुर वचनों द्वारा वे उसके ज्वलित ह्मदय को शान्त करते हैं। सन्तों में विद्यमान धैर्य एवं क्षमा तथा उनके शील स्वभाव का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। उनके कोमल, मृदुल वचनों से पत्थर ह्मदय मनुष्य भी पिघल जाता है और दानवता त्यागकर मानव बन जाता है। उनके मुखमंडल पर सदैव मधुर मुस्कान खेला करती है और वे सदैव ज्ञान की सुगन्ध चहुँ ओर फैलाया करते है। जो कोई भी उनके पवित्र दर्शन करता है, उसके तीनों ताप नष्ट हो जाते हैं। सन्त पलटूदास जी कथन करते हैं कि जो प्राणी सन्तों की चरण शरण में आ जाता है, उसके अन्तर की ज्वाला अर्थात् अशान्ति तुरन्त मिट जाती है जिससे उसका ह्मदय शान्तमय हो जाता है।

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