जाकी गुरु में वासना सो पावै भगवान।
सहजो चौथे पद बसै, गावत वेद पुरान।।
साध-संग की बासना, जेहि घट पूरी सोय।
मनुष-जन्म सतसंग मिलै, भक्ति परापत होय।।
अर्थः-""अन्त समय जिसकी सुरति गुरु के ध्यान में जुड़ जाती है। उसे परमेश्वर की प्राप्ति होती है। सहजो बाई जी कथन करती हैं ऐसा जीव चौेथे पद अर्थात् परमपद का अधिकारी बनता है। वेद और पुराण भी इसका समर्थन करते हैं।'' "" देह त्यागने के समय अगर ध्यान सत्संग और सन्तों के दर्शन की ओर चला जावे तो दूसरा जन्म उसे मनुष्य का मिलेगा जिसे पाकर वह भक्ति और सत्संग की ओर पग बढ़ावेगा।''
सहजो चौथे पद बसै, गावत वेद पुरान।।
साध-संग की बासना, जेहि घट पूरी सोय।
मनुष-जन्म सतसंग मिलै, भक्ति परापत होय।।
अर्थः-""अन्त समय जिसकी सुरति गुरु के ध्यान में जुड़ जाती है। उसे परमेश्वर की प्राप्ति होती है। सहजो बाई जी कथन करती हैं ऐसा जीव चौेथे पद अर्थात् परमपद का अधिकारी बनता है। वेद और पुराण भी इसका समर्थन करते हैं।'' "" देह त्यागने के समय अगर ध्यान सत्संग और सन्तों के दर्शन की ओर चला जावे तो दूसरा जन्म उसे मनुष्य का मिलेगा जिसे पाकर वह भक्ति और सत्संग की ओर पग बढ़ावेगा।''
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