Thursday, March 10, 2016

चींटी चावल लै चली, बिच में मिलि गइ दार।

चींटी चावल लै चली, बिच में मिलि गइ दार।
कह कबीर दोउ ना मिलै, इक लै दूजी डार।।


अर्थः-च्यूंटी का उदाहरण देते हुए फरमाते हैं कि वह चावल का दाना ले जा रही थी। मार्ग में उसे दाल का दाना पड़ा हुआ मिल गया। लोभ वश उसने सोचा कि इसे भी ले चलूँ। जब वह उसे उठाने लगी तो चावल गिर पड़ा। उस एक छोटे से मुख में दो दाने तो समा नहीं सकते थे। परन्तु वह उसे भी छोड़ना नहीं चाहती थी। जब वह दोबारा चावल उठाती तो दाल का कण गिर पड़ता। इसी उधेड़ बुन में उसे पर्याप्त समय लग गया। उसकी यह दशा देखकर महापुरुषों ने कथन किया कि दोनों वस्तुएं एक साथ नहीं मिल सकतीं। तुझे हर अवस्था में एक को छोड़ना और दूसरी को लेना होगा।

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