कबीर गुरु की भक्ति का, मनमें बहुत हुलास।
मन मनसा माँझै बिना, होन चहत है दास।।
अर्थः-श्री कबीर साहिब जी का कथन है कि मनमें गुरु-भक्ति प्राप्त करने की लालसा तो बहुत है; परन्तु यह मन है कि सांसारिक इच्छाओं तथा मनमति को मलियामेट किये बिना ही गुरु के दास अथवा भक्त का दर्ज़ा पा लेना चाहता है। जब ऐसी दशा है, तो सफलता कैसे प्राप्त हो?
मन मनसा माँझै बिना, होन चहत है दास।।
अर्थः-श्री कबीर साहिब जी का कथन है कि मनमें गुरु-भक्ति प्राप्त करने की लालसा तो बहुत है; परन्तु यह मन है कि सांसारिक इच्छाओं तथा मनमति को मलियामेट किये बिना ही गुरु के दास अथवा भक्त का दर्ज़ा पा लेना चाहता है। जब ऐसी दशा है, तो सफलता कैसे प्राप्त हो?
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