Saturday, March 26, 2016

सतगुरु से परिचय बिना, भरमत फिरै अन्धेर।

सतगुरु से  परिचय बिना, भरमत फिरै अन्धेर।
सूरज के निकसै बिना, कैसे होय सवेर।।

अर्थः-जब तक सन्त सतगुरु का परिचय नहीं मिला अर्थात् जीव जब तक उनसे यथार्थ दर्शन करने वाली दिव्य दृष्टि प्राप्त नहीं कर लेता; तब तक जीव मोह भ्रम के अन्धकार में भटकता रहता है। जिस प्रकार सूर्य के उदय हुए बिना दिन का उजाला नहीं होता; वैसे ही सतगुरु कृपा के बिना मोह अज्ञान और भ्रम का नाश नहीं हो सकता।

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