अरब खरब लौं लच्छमी, उदय अस्त लौं राज।
तुलसी जौ निज मरन है, तौ आवै कौनै काज।।
तुलसी जौ निज मरन है, तौ आवै कौनै काज।।
अर्थः-सन्त तुसली साहिब का विचार है कि चाहे अरबों खरबों के मूल्य का धन एकत्र कर लिया जाये और चाहे सृष्टि के इस छोर से उस छोर तक अर्थात् जहाँ से सूर्योदय होता है, वहां से लेकर सूर्यास्त की सीमा तक का साम्राज्य भी अपने अधिकार में हो। परन्तु जबकि अपना मृत्यु के मुख में जाना निश्चित है और यह भी सिद्ध है कि मृत्यु-समय ये धन और अधिकार अपनी कुछ भी सहायता नहीं कर सकेंगे; तो फिर इनका लाभ क्या हुआ?
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