Friday, January 8, 2016

10.01.2016

जो जन जाकी सरन है, ताकी तिस को लाज।
उलटि धार मछरी चलै, बहै जातु गजराज।।

अर्थः-गजराज बड़े डील-डौल का तथा बलवान प्राणी है, किन्तु नदी की तीव्र धारा के सम्मुख नहीं ठहर सकता। धारा के बहाव में वह बहा चला जाता है। कारण इसका सन्तों ने यह बतलाया है कि वह जल का शरणागत नहीं है अर्थात् उसका मन जल से मिला हुआ नहीं है। इसलिये उसे जल बहा ले जाता है। जबकि मछली जो जल की शरणागत है और जिसका मन जल से मिला हुआ है, छोटी और निर्बल होती हुई भी नदी की तीव्र धारा के विपरीत दिशा में सरलतापूर्वक तैरती चली जाती है। जल की तीव्र धारा का बहाव भी उसे मार्ग दे देता है और वह उसे चीरती हुई निकल जाती है। इससे यह सिद्ध हुआ कि जो कोई जिसकी शरण शुद्ध मन से ग्रहण कर लेता है; शरण्य को उसकी लाज रखनी होती है।

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