Friday, January 8, 2016

15.01.2016

सब साधन को मूल है, दुर्लभ सतगुरु प्रेम।
प्रेम बिना थोथे सभी ज्ञान ध्यान व्रत नेम।।

अर्थः-युगपुरुष सन्त सतगुरु का विशुद्ध प्रेम अति दुर्लभ है और यही समस्त साधनों का मूल भी है। ज्ञान-ध्यान, व्रत-नियम आदि साधन तभी श्रेष्ठ हैं; जबकि इनके द्वारा पवित्र प्रभु-प्रेम जाग्रत हो। अन्यथा यदि इन साधनों के द्वारा मालिक का सच्चा प्रेम पैदा नहीं होता, तो फिर ये सब थोथे ही कहे जाने योग्य हैं। क्योंकि समस्त साधनों का उद्देश्य तो प्रेम की उपलब्धि ही है। मूल वस्तु यही पवित्र प्रेम है, अन्य साधन उसकी प्राप्ति के निमित्त मात्र हैं।

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