Tuesday, January 12, 2016

20.01.2016 दोहा

मन भरि के जे बोईयै, घुँघची भर नहीं होय।
कहा हमार मानियो नहीं, जन्म जायेगो खोय।।

अर्थः-इन मानसिक विकारों को जिस कदर भी तरक्की दी जाये, इनसे कुछ भी हासिल नहीं होता। अगर ये बढ़ते-बढ़ते मन भर की मात्रा में भी हो जायें तो भी ये जीव को मुट्ठी भर लाभ तक नहीं पहुँचा सकते। ये जिस कदर ज़्यादा बढ़ेंगे उसी कदर ही इनसे रुहानी नुकसान की उम्मींद है। इसीलिये सन्त जन फरमाते हैं कि ऐ जीव! अगर हमारे सत्उपदेश से लापरवाही करके इन्हीं मानसिक विकारों के फेर में ही पड़े रह गये तो फिर यह कीमती इनसानी जन्म यों ही खोया जायेगा। इसलिये जहाँ तक हो सके जीव को इन मानसिक विकारों से और बुराईयों से किनारा करके सत्पुरुषों की राहनुमाई में चलकर नाम और भक्ति की सच्ची कमाई करके ऊँचे दर्ज़े को प्राप्त करना चाहिये।

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