Friday, January 8, 2016

12.01.2016

धनवन्ते सब ही दुःखी, निर्धन हैं दुःख रुप।
साध सुखी सहजो कहै, पायों भेद अनूप।।

अर्थः-निर्धन लोग तो धनाभाव तथा भौतिक सुखों के अभाव के कारण दुःख के शिकार हैं और धनवान भी जुगुप्सा एवं धन लोलुपता में मुबतिला रहने से कम दुःखी नहीं। सहजोबाई जी का कहना है कि सुखी केवल साधुजन हैं, जिन्होने सच्चे सुख का अनुपम भेद पा लिया है।

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