Tuesday, January 12, 2016

19.01.2016 दोहा



मन दिया कहुँ और ही, तन साधों के संग।
कहैं कबीर कोरी गज़ी, कैसे लागै रंग।।

अर्थः-श्री कबीर साहिब जी का कथन है कि जिस प्रकार कोरी गज़ी (कोरे थान) पर रंग नहीं चढ़ सकता, क्योंकि उस पर माँडी चढ़ी रहती है। जब तक उसकी माँडी नहीं उतरेगी, रंग कदापि नहीं चढ़ सकेगा। इसी प्रकार ही कई लोग अपने शरीर तो सत्संग में बेशक रखते हैं, किन्तु उनके मन पर रंग इसलिये नहीं चढ़ सकता कि मन पर नफ़सानियत और खुदगर्ज़ी के स्थूल आवरण चढ़े रहते हैं।

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