Saturday, January 23, 2016

जीवन थोरा ही भला....

जिवना थोरा ही भला, जो सत सुमिरन होय।
लाख बरस का जीवना, लेखे धरै न कोय।।

जीवन तो वही उत्तम है जो नाम-सुमिरण में व्यय हो, वह यदि थोड़ा भी है तो भी उत्तम है। इसके विपरीत जो मनुष्य नाम-सुमिरण से वंचित है, वह यदि लाखों वर्षों तक भी जीवित रहे तो उसकी इस दीर्घायु का भी कोई लाभ नहीं। इसीलिये सत्पुरुष फरमाते हैं कि नाम के बिना जीवन मृत्यु के समान, विद्या अविद्या के समान तथा संसार का सुख-दुःख के समान है।

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