Tuesday, January 26, 2016

द्वार धनी के पड़ि रहै, धका धनी का खाय

द्वार धनी के पड़ि रहै, धका धनी का खाय।
कबहुँक धनी निवाजई, जो दर छाड़ि न जाय।।

अर्थः-परमसन्त श्री कबीर साहिब फरमाते हैं कि ऐ सेवक! दृढ़ निश्चय से सद्गुरुदेव पूर्ण धनी के द्वार पर पड़े रहो और उनकी ओर से कितने भी कष्ट झेलने पड़ें और धक्के खाने पड़ें, प्रसन्नतापूर्वक सहन करो। यदि दृढ़ निश्चय के साथ डटे रहोगे और द्वार छोड़ कर भाग न जाओगे तो एक न एक दिन धनी की कृपादृष्टि अवश्य ही तुम पर पड़ेगी और तुम प्रभु के प्रेमास्पद बन जाओगे।

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