अधिक सनेही माछरी, दूजा अल्प सनेह।
जब ही जल से बिछुरै, तत छिन त्यागै देह।।
अर्थः-मछली का जल के प्रति प्रबल प्रेम है। उसकी तुलना में प्रेम के अन्यान्य उदाहरण तुच्छ हैं। क्योंकि मछली तो ज्योंही जल से बिछुड़ती है, उसी क्षण तड़पने लगती है और तड़पती हुई प्राणोत्सर्ग कर देती है। जब पशु-पक्षियों और साधारण जीवों के चित्त में प्रेम की इतनी प्रबल भावनाएँ विद्यमान हैं, तो फिर विचार करो कि गुरुमुखों का मालिक के चरणों में कितना अधिक प्रेम होना चाहिये।
जब ही जल से बिछुरै, तत छिन त्यागै देह।।
अर्थः-मछली का जल के प्रति प्रबल प्रेम है। उसकी तुलना में प्रेम के अन्यान्य उदाहरण तुच्छ हैं। क्योंकि मछली तो ज्योंही जल से बिछुड़ती है, उसी क्षण तड़पने लगती है और तड़पती हुई प्राणोत्सर्ग कर देती है। जब पशु-पक्षियों और साधारण जीवों के चित्त में प्रेम की इतनी प्रबल भावनाएँ विद्यमान हैं, तो फिर विचार करो कि गुरुमुखों का मालिक के चरणों में कितना अधिक प्रेम होना चाहिये।
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