Tuesday, June 21, 2016

मैं मेरी जब जायेगी, तब आवेगी और।

मैं मेरी जब जायेगी, तब आवेगी और।
जब यह निश्चल होयगा, तब पावैगा ठौर।।
मोर तोर की जेवड़ी, बटि बाँध्यौ संसार।।
दास कबीरा क्यों बँधै, जाकै नाम अधार।।
अर्थः-""ऐ भद्रपुरुष! जब तू मैं-मेरी की झपट से निकलकर तू-तेरी के चंगुल से भी निकल आवेगा; तब कहीं जाकर मोक्षधाम की देहली पर पहुँचेगा।'' ""ऐ प्रेमी! सचजान, यह सारा संसार मेरे और तेरेपने की सुदृढ़ रस्सियों में ऐसा जकड़ा पड़ा है कि सैंकड़ों जन्म तक भी इन रस्सियों से छुटकारा नहीं पा सकता। यदि किसी मनीषी के मन में अपने सत्गुरु के बख्शे हुये पवित्र नाम की दृढ़ टेक है, तो केवल वही एक मुक्त पुरुष है। वह मेरे-तेरे पने का सब पर्दा फाड़कर अमृत-पान करने का अधिकारी बन जाता है।''

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