Thursday, June 9, 2016

वासर सुख नहीं रैन सुख, ना सुख धूप न छाँह।

वासर सुख नहीं रैन सुख, ना सुख धूप न छाँह।
कै सुख सरने राम के, कै सुख सन्तों माँह।।
अर्थः-ऐ मनुष्य! हरि की शरण में अथवा सन्त सत्पुरुषों की संगति में ही सच्चे सुख की आशा की जा सकती है नहीं तो जीव के मन में दिन हो या रात, धूप हो या छाया किसी दशा में भी पूर्ण शान्ति नहीं आ सकती। जीवन काल में इस उपरिलिखित दोनों की प्राप्ति का सफल प्रयत्न करना ही मनुष्य का "अपना काम' है। अन्यथा इस प्रपंच का तो यह स्वरुप भर्तृहरि-निति शतक में वर्णन करते हैः-

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