Monday, June 13, 2016

भले से भला करे, यह जग का व्यवहार।

भले से भला करे, यह जग का व्यवहार।
                बुरे से भला करे, ते विरले संसार।।
प्रायः संसार में यही देखने में आता है कि जो भलाई करे लोग उसके साथ ही भलाई करते हैं, परन्तु उदारता तो इसी में है कि मनुष्य बुराई के बदले भलाई करे जैसे कि वृक्ष पत्थर मारने वाले को भी फल और छाया देता है। अतएव ऐ जिज्ञासु! तू भी ऐसा करना सीख और बुराई के बदले भलाई कर।
तराज़ू से अदल का हुनर पायाः-अदल का अर्थ है न्याय अर्थात् उचित और अनुचित का विवेक। तराज़ू सबको न्याय सिखाता है। ज़रा सी वस्तु घट-बढ़ जाने पर फौरन ही पलड़ा नीचे-ऊपर हो जाता है। दूसरे की आत्मा को अपनी आत्मा के सदृश जान कर ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे दूसरों की आत्मा को दुःख हो। अपनी आत्मा में तनिक सी मलिनता आने पर उसका प्रभाव दूसरों की आत्मा पर पड़ता है। भाव यह कि दूसरों के लिये वह मत सोचो जो तुम्हें स्वयं के लिये अच्छा नही लगता। दूसरों को अपने से हीन समझना अपनी ही हीनता है। फारसी कवि का कथन हैः-
                हर चे बर ख़ुद म पसन्दी, ब दीगरां म पसन्द।।
अर्थात् जो तुम्हें पसन्द नहीं है वह दूसरों के लिये भी अच्छा मत समझो।
करो इख़लास सबसे एक जैसा, माहेताबां ने यह नुस्खा पढ़ायाः- इख़लास का अर्थ है व्यवहार और माहेताबां का अर्थ है चांदनी। जैसे चांदनी हर स्थान पर और हर वस्तु पर एक सी रोशनी व ठंडक बरसाती है वैसे ही मनुष्य को हर किसी से हमदर्दी और प्रेम का व्यवहार करना चाहिये। जैसे चांद रोशनी देता है वैसे ही परमार्थी का जीवन लोगों के लिये आत्मिक रोशनी देने वाला एवं पथ प्रदर्शक सिद्ध हो। ऐ जिज्ञासु! तुझे भी यदि जीवन के लक्ष्य को पाने की अभिलाषा है तो सबके साथ समान भाव और निःस्वार्थ भाव से प्रेम भरा व्यवहार कर तभी तू अपने लक्ष्य को पा सकेगा। कितना परमार्थ अर्थात् रुहानी राज़ भरा हुआ है सत्पुरुषों के एक एक वचन में।
     श्री परमहँस दयाल जी फरमाते हैं कि ऐ जिज्ञासु! प्रकृति की प्रत्येक जड़ वस्तु तुझे शिक्षा दे रही है, तू उनसे शिक्षा ले और अपने जीवन को तदनुरुप आचरण में ढाल। हमने भी इन जड़ वस्तुओं से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उनकी शिक्षानुसार बनाया तभी अपने ध्येय को प्राप्त करने में सफल हुये। सन्त महापुरुष सदा इसी मार्ग पर चलते आये हैं और चलते रहेंगे। परमार्थ,परोपकार, समदृष्टि, न्यायोचित व्यवहार, सच्चाई तो उनके मुख्य नियम व सिद्धांत हैं। इन नियमों के पालन करने से ही सत्पुरुषों की पदवी प्राप्त होती है। वास्तव में नेक आचरण ही जीवन है। यही एक मात्र साधन है अपने ध्येय की प्राप्ति का।  इसी मार्ग पर चल कर जिज्ञासु को अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिये।

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