Friday, June 3, 2016

ऐसो दुर्लभ जात शरीर।

ऐसो दुर्लभ जात शरीर। राम नाम भजु लागै तीर।
गये बेणु बलि गेहै कंस। दुर्योधन गये बूड़े बंस।।
पृत्थु गये पृथ्वी के राव। विक्रम गये रहे नहिं काव।।
छौं चकवै मंडली के झार। अजहूँ हो नर देखु विचार।।
गोपीचन्द भल कीन्हों योग। रावण मरिगो करतै भोग।।
जात देखु अस सबके जाम। कहैं कबीर भजु रामैं राम।।
अर्थः-ऐसा दुर्लभ एवं अनमोल मानुष शरीर हाथों से चला जा रहा है। यदि तू मालिक का भजन करे, तो तेरी नाव किनारे पर लगे। संसार की झूठी बड़ाई तथा मिथ्याभिमान किस काम का? जबकि बेणि, बलि और कंस जैसे महासम्राट भी संसार से मिट गये। दुर्योधन जैसे भी मृत्यु के मुख में चले गये और उनके वंश का नाम तक डूब गया।  समस्त भूमण्डल के एकाधिपति राजा पृथु भी न रहे और विक्रमादित्य भी शेष न रहे। ये छहों राजा जिनके नाम ऊपर आये हैं; कोई साधारण राजा नहीं थे, वरन् छत्रपति सम्राट थे। ऐ मनुष्य! अब भी तनिक विचार करके देख कि जब ऐसे ऐसे सृष्टि में होकर मिट गये, तो फिर स्वयं तू किस गिनती में है? परन्तु इनकी तुलना में राजा गोपीचन्द भी हुए हैं, जिन्होने संसार के भोगैश्वर्य तथा विलास-सामग्रियों में आसक्त न रहकर मालिक के भजन में मन लगाया, फलतः आज तक उनका नाम संसार में उज्ज्वल एवं अमर है। रावण भी तो कुछ कम सामथ्र्यवान और वैभवसम्पन्न नहीं था, किन्तु वह सांसारिक भोगों का मतवाला होकर मर मिटा। सृष्टि के रंगमञ्च से उसका नाम भी मिट गया। उसकी असत्य एवं अधर्म-प्रियता तथा उसके मिथ्याभिमान के कारण आज तक संसार उसके नाम से घृणा करता है और सब उसकी निंदा-भत्सर्ना करते हैं। ऐसे वैभव तथा ऐश्वर्य से लाभ भी क्या? श्री कबीर साहिब फरमाते हैं कि इसी प्रकार सबके शरीर नश्वर हैं और नष्ट होंगे ही। परन्तु यदि जीवन का सच्चा आनन्द प्राप्त करना है और मर कर भी अमर रहने की कामना है, तो मालिक के भजन मे मन लगाओ। मालिक का भजन ही केवल मनुष्य को उस अजर अमर पद की प्राप्ति करा सकता है। जहाँ काल अथवा मृत्यु की पहुँच नहीं।




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