Saturday, June 11, 2016

बन्दे कोलों रुख चंगेरा, जेहड़ा लग पवे बिन लायों।

बन्दे कोलों रुख चंगेरा, जेहड़ा लग पवे बिन लायों।
ढीमा खाये ते फल खवाये, अते फ़रक न करदा छायों।।
चंगा खावें ते चंगा पहनें, अते रब्ब दा नाम भुलायों।
आख ग्वाला मोयां जीउंदियां, तू केड़े कम आयों।।
प्रायः पेड़ अपने आप ही बिना लगाये उगते हैं। फिर इनमें यह विशेष गुण है कि पत्थर मारने पर भी वे फल देते हैं। अपनी छाया देने में भी वे भेदभाव नहीं रखते। वृक्षों से मनुष्य के सहरुाों काम भी होते हैं। फल, फूल, पत्ता, टहनी और तना सब कुछ मनुष्य के काम आता है। किसी ने तो यहां तक कहा है कि मनुष्य का जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त वृक्षों से सम्बन्ध है। बालपन में झूला एवं खिलौने, यौवनावस्था में मेज़-कुर्सी आदि, बुढ़ापे में सहारे के लिये लाठी, जीवन भर खाना बनाने को र्इंधन, यहां तक कि मृत्यु के बाद अन्तिम संस्कार के लिये भी लकड़ियों की ही आवश्यकता पड़ती है। घरों में ठाठबाठ की अधिकतर वस्तुयें लकड़ी की ही बनती हैं। तात्पर्य यह कि वृक्षों से मनुष्य के सहरुाों काम संवरते हैं। सन्त ग्वालदास जी कहते हैं कि ऐ मनुष्य! तूने यदि अच्छा खाते-पीते एवं पहनते हुये भी मालिक के नाम को भुला दिया तो फिर तूने जीवित रहकर क्या किया? मरणोंपरान्त तो वैसे भी तेरा यह शरीर किसी काम नहीं आता। जीवन में भी यदि तूने भजन-बन्दगी न की तो समझ तूने अपना जीवन व्यर्थ कर दिया। अतः ऐ जिज्ञासु! अब भी समझ और वृक्ष की न्यार्इं दूसरों के काम आ

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