Monday, February 1, 2016

सद्गुरु की महिमा-भवसागर से तरना


कथा कीरतन कलि विषै, भव सागर की नाव।
कबीर जग के तरन को, नाहीं और उपाव।।

अर्थः-श्री कबीर साहिब के विचारानुसार इस घोर कलिकाल में जब कि चहुँओर दूषित वातावरण दृष्टिगोचर होता है तथा तपस्यादि कठिन साधनों का आश्रय ग्रहण करना असम्भवप्राय प्रतीत होता है; भवसागर से तरने के लिये कथा-कीर्तन ही वह सुदृढ़ नौका है, जो जीवात्मा को पार पहुँचा सकती है। इसे छोड़कर कोई अन्य उपाय अथवा साधन नहीं दिखायी देता, जिसके आधार संसारी प्राणी भव-पार हो सकें।

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