Saturday, February 13, 2016

नाम प्रताप

देखौ नाम प्रताप से सिला तिरै जल बीच।।
सिला तिरै जल बीच सेतु में कटक उतारी। नामहिं के परताप बानरन लंका जारी।।
नामहिं के परताप ज़हर मीरा ने खाई। नामहिं के परताप बालक प्रहलाद बचाई।।
पलटू हरिजस ना सुनै ता को कहियै नीच। देखौ नाम प्रताप से सिला तिरै जल बीच।।

अर्थः-देखो तो सही कि मालिक के नाम के प्रताप से पत्थर जल में तैरते हैं। नाम की ही शक्ति ने पत्थरों को जल में तैराकर पुल पर से बानर सेना को पार उतार दिया। नाम के बल से ही एक बानर (हनुमान जी) ने लंका जैसी सुदृढ़ नगरी को जलाकर भस्म कर दिया। जो अति बलवान राजा रावण की राजधानी थी तथा जहाँ प्रतिपल हज़ारों राक्षसों का पहरा रहता था। नाम ही का यह प्रताप था कि मीराबाई ने हँसते हँसते विष से भरा प्याला होंठों से लगा लिया और उसका कुछ भी न बिगड़ा। जब बालक प्रहलाद को उसके दुष्ट पिता हिरण्यकश्यप ने मार डालने का निश्चय कर लिया था तब नाम के आधार ने ही प्रह्लाद जी की प्राण रक्षा की। इसलिये श्री पलटू साहिब जी का कथन है कि जो मालिक के नाम की महिमा को नहीं सुनता उसे नीच कहना ही उचित है। क्योंकि नाम के प्रताप से ही पत्थर तक जल में तैर जाते हैं।

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