Monday, February 1, 2016

सतगुरु के उपकार का....

सतगुरु के उपकार का बदला दिया न जाइ।
तीन लोक की सम्पदा, भेंटत मन सकुचाइ।।
जैसे सतगुरु तुम करी, मुझ से कछु न होय।
विष भाँडे विष काढ़ करि, दिया अमी रस मोय।।

अर्थः-सतगुरु के उपकार का बदला नहीं दिया जा सकता। उनके उपकार के बदले में तीन लोक की सम्पदा भेंट करते हुये भी मन में संकोच का अनुभव होता है; क्योंकि उस उपकार की तुलना में तीनों लोक की सम्पत्ति और वैभव भी तुच्छ हैं। शिष्य गुरु के उपकार के मूल्य को जानता समझता है। इसलिये वह प्रार्थना करता है कि ऐ सतगुरु! जो आपने मुझ पर उपकार किया है, उसके बदले में मुझ से कुछ भी नहीं हो कता। आपने तो हमारे विष-भरे मन में से विषैली वासनाओं को निकालकर उनके स्थान पर प्रेमाभक्ति का अमृत भर दिया। भला इससे बड़ा उपकार और क्या हो सकता है?

2 comments:

  1. Tere ahsan ka badla chokaya ja nhn skta, pyar aisa diya tune bolaya ja nhn sakta....jai gurandi.

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  2. Tere ahsan ka badla chokaya ja nhn skta, pyar aisa diya tune bolaya ja nhn sakta....jai gurandi.

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