Wednesday, February 3, 2016

संत उदय संतत सुखकारी

संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इन्दु तमारी।।

अर्थः-""सन्तों का अभ्युदय अर्थात् उनका संसार में शुभागमन सदैव ही सुखकर होता है जैसे चन्द्रमा एवं सूर्य का उदय सम्पूर्ण विश्व के लिये सुखदायक है।'' ऐसे दैवीगुण सम्पन्न मनुष्य उत्तम श्रेणी के मनुष्य हैं। दूसरे प्रकार के मनुष्य वे हैं जो स्वलाभ एवं स्वहित के साथ साथ परहित एवं परलाभ का भी ध्यान रखते हैं। वे मध्यम श्रेणी के मनुष्य हैं। तीसरे वे हैं जो स्वलाभ अथवा स्वहित को ही दृष्टिगत रखते हैं। स्वलाभ अथवा स्वहित के लिये वे दूसरों को हानि पहुँचाने में भी कोई दोष नहीं समझते। ये आसुरीगुण सम्पन्न मनुष्य निम्नश्रेणी के मनुष्य हैं। चौथे वे हैं जो केवल अन्यान्य प्राणियों की हानि की ही सोचते रहते हैं। अन्यों को हानि पहुँचाने के लिये वे अपनी हानि तक करने को तत्पर हो जाते हैं। श्री रामचरितमानस में ऐसे मनुष्यों के लिये वर्णन है।

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