Wednesday, February 10, 2016

भक्ति गेंद चौगान की

भक्ति गेंद चौगान की, भावै कोई ले जाय।
कह कबीर कछु भेद नहिं, कहा रंक कहा राय।।


अर्थः- भक्ति तो चौगान की गेंद है। इसे जो भी चाहे ले जा सकता है। इस खेल में धनी और निर्धन का भेद नहीं किया जाता। चौगान एक खेल है इसमें खिलाड़ी घोड़े पर बैठे हुए एक लम्बी छड़ी से मैदान में पड़ी हुई गेंद को लक्ष्य स्थान पर ले जाते हैं। परम सन्त श्री कबीर साहिब जी भक्ति की उपमा चौगान की गेंद से देते हैं अर्थात योग-ज्ञान-तप-यज्ञ आदि के द्वारा जैसी भी साधना परमात्मा को प्राप्त करने के लिये की जाय सब सुन्दर है परन्तु भक्ति तो एक गेंद है। यह खुले मैदान में पड़ी है। कोई भी इसे उठाकर परमेश्वर तक पहुँचा दे-जो भगवान के साथ भक्ति की गेंद खेलेगा वह कितना ही भाग्यशाली होगा।

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