Thursday, February 18, 2016

बिरले जल जग ऊबरै

या माया की चोट, सुर नर मुनि नहिं निस्तरै।
ले सतगुरु की ओट बिरले जन जग ऊबरै।।

अर्थः-सत्पुरुष कथन करते हैं माया की शक्ति इतनी प्रबल है कि इसकी चोट से देवता, मुनि और मानव कोई नहीं बच सका। इस प्रबल शक्ति ने समस्त संसार को अपनी लपेट में ले रखा है। इसका विस्तार लम्बा चौड़ा है और इसके प्रहार अत्यन्त गुप्त होते हैं। साधारणतया इस माया के प्रहारों से बच सकना अत्यन्त दुष्कर है। किन्तु  विरले ही ऐसे जीव संसार में होते हैं, जो सन्त सतगुरु की ओट लेकर माया के दाँव पेच से साफ बचकर निकल जाते हैं।

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