Friday, February 12, 2016

हंस रूप कोई साध है

हंसा पय को काढ़ि लै, छीर नीर निरवार।
                ऐसे गहै जो सार को, सो जन उतरै पार।।
                     छीर रुप सतनाम है, नीर रुप व्यवहार।
                     हंस रुप कोई साध है, तत का छाननहार।।

हंस की चोंच में यह शक्ति होती है कि दूध और पानी को पृथक्-पृथक् कर देती है और हंस दूध का सेवन करके पानी को छोड़ देता है अर्थात् सार वस्तु को ग्रहण करके असार वस्तु का त्याग कर देता है। इसी प्रकार विचारवान गुरुमुख सत्संगी पुरुष भी इस मिले-जुले संसार में से सार वस्तु को ग्रहण करके असार वस्तु को त्याग देता है, परिणामस्वरुप वह सुगमता से इस भवसागर को पार कर लेता है। परमसन्त श्री कबीर साहिब जी फरमाते हैं कि वह सार वस्तु अथवा दूध मालिक का नाम है और असार वस्तु अथवा नीर माया-काया का व्यवहार है। सन्त सद्गरु के प्यारे गुरुमुखजन संसार में रहते हुये भी हंस के समान सार वस्तु मालिक की भजन भक्ति को ही ग्रहण करते हैं।

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