Thursday, February 4, 2016

सतगुरु मिलै तो पाइयै,भक्ति मुक्ति भण्डार।
दादू सहजै देखिये, साहिब का दीदार।।

अर्थः-""जिस जिज्ञासु को अपने मालिक के दर्शनों की अभिलाषा है तो वह पहले सन्त सद्गुरुदेव जी से मिलाप करे-वे ही इसे भक्ति और मुक्ति का अक्षय धन दे देंगे और फिर उसे बिना किसी कठिनाई के प्रभु का दर्शन दीदार हो जायेगा।'' अतः सन्त सद्गुरुदेव जी की सहायता की बड़ी आवश्यकता होती है। इस ब्राहृ-ज्ञान के मार्ग पर पग बढ़ाते हुए जब तक उनका गहरा सम्पर्क प्राप्त न होगा, उनके चरण-कमलों में दृढ़ अनुराग न होगा उनके समीप बैठकर ब्राहृविद्या की गम्भीर गुत्थियों को सुलझाया न जाएगा और उनके बताये हुए सुरत-शब्द-योग के अभ्यास की साधना न की होगी तब तक ऊपर गिनाये हुए गुण केवल पाठ-मात्र होंगे। वे अपने अन्तःकरण में ठहर न सकेंगे। और जब तक सन्त सत्पुरुषों की संगति न मिलेगी और अपने में सद्गुणों की ज्योति न जगेगी तब तक अपने आसन पर बैठना (आत्मस्थिति) असम्भव हो जायेगा।

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