मन जानत सब
बात, जानत ही औगुन करै।
काहे को कुसलात
, हाथ दीप कूएँ परै।।
अर्थः-श्री
कबीर साहिब फरमाते हैं कि मनुष्य का मन सभी बातों का जानकार है। वह भली प्रकार
जानता है कि भलाई किसमें है और बुराई किसमें?
कौन सा काम करने
से लाभ होगा और किससे हानि होगी। किन्तु आश्चर्य तो इस बात का है कि सब कुछ जानता
समझता हुआ भी मानव मन बुराई औगुण स्वार्थ एवं विषय लोलुपता की ओर अधिक आकृष्ट रहता
है। यह तो वही बात हुई जैसे कोई हाथ में दीपक लेकर कुएँ में जा गिरे। जहाँ ऐसी
अवस्था हो, वहाँ कुशलता की आशा रखना व्यर्थ है।
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