Monday, February 29, 2016

भक्तिवन्त तैसे झुके....

फल से तरु नीचे झुके, जलधर भी झुक जाहिं।
भक्तिवन्त तैसे झुके, भक्ति सम्पदा पाहिं।।

अर्थः-वृक्ष पर जब फल लगते हैं तो जितने ही अधिक फल लगते हैं, उसकी शाखायें उतनी ही अधिक झुक जाती हैं। ऐसे ही जल से भरे हुये मेघ भी धरती की ओर झुकते हैं। ठीक इसी प्रकार जो भक्ति मान पुरुष होता है, वह भक्ति की सम्पदा प्राप्त करके झुक जाता है अर्थात् विनम्र बन जाता है।

No comments:

Post a Comment