Friday, February 5, 2016

जीव एक है और दुश्मन पांच...

कबीर बैरी सबल हैं, एक जीव रिपु पाँच।
अपने अपने स्वाद को, बहुत नचावैं नाँच।।

अर्थः-भक्ति मार्ग में पग रखने वाले जीव के मार्ग में बाधायें डालने वाले शत्रु बलवान और शक्तिशाली हैं। एक ओर अकेला जीव है और दूसरी ओर उसके विरुद्ध पांच (काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार) शक्तिशाली शत्रु हैं। ये पांचों ही बड़े क्रूर हैं और जो जीव इनके पंजे में आ जाता है उसे ये पांचो ही अपने अपने स्वार्थ के लिये भांति-भांति के नाच नचाते हैं। इसलिये जीव को भक्ति-मार्ग में बहुत ही संभल कर और इन शत्रुओं से बच कर चलना होगा।

3 comments:

  1. Mere guruji ke niyam nibaoo, mauja he mauja hai...

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  2. जिसके सिर ऊपर तू स्वामी सो दुख केसा पावे

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  3. जिसके सिर ऊपर तू स्वामी सो दुख केसा पावे

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